Tuesday, February 21, 2012

मीडिया के भीतर

यह सही है कि मीडिया का समकालीन परिदृश्य उस कल्पना से बिलकुल अलग है, जो इस दुनिया में आने की तैयारी के समय हम कुछ लोगों के मन में थी. 'हम कुछ लोग' भी शायद मैं भावविभोर हो कर ही ज़्यादा कह रहा हूँ, क्योंकि कई साथी जिस तरह सफल प्रमाणित हुए हैं, वह बताता है कि यथार्थ की उनकी समझ और उसके दांवपेंचों पर पकड़ की उनकी योजना तब भी सटीक ही रही होगी. पर फिर भी आदर्शवाद और मिशन आदि भाव युवा पत्रकारों के मन में कमोबेश रहते थे. आज के युवा मीडियाकर्मियों के मन में ये बिलकुल नहीं हैं, ऐसा कहना बल्कि सोचना भी बड़ा ग़लत और अन्यायपूर्ण होगा. लेकिन आज सफलता के सूत्र अपेक्षाकृत जल्दी सिद्ध कर लेने का दबाव तो है, जो स्वयं ही इस विद्या की बारीकियां सिखा देता है.

मीडिया के संसार में आने के बाद वरिष्ठों और दिग्गजों में से कई के चतुर चेहरे तो लगातार देखे हैं, जब-जब पत्रकारिता के विद्यार्थियों और युवतम साथियों से साक्षात्कार के अवसर आए हैं, आश्वस्ति भी हुई है, आशंका भी.

आने वाली दुनिया में अभी तो हम मौजूद हैं. क्या छोड़ कर जाते हैं, क्या रच कर, क्या बिगाड़ कर, यह तय होना है.

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