शनिवार, 1 फ़रवरी, 2020 को दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama popularly known by its acronym NSD) के आयोजन भारत रंग महोत्सव (भारंगम) के 21वें संस्करण का शुभारम्भ हुआ।
उद्घाटन समारोह कमानी प्रेक्षागृह में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि थीं सुविख्यात गायिका और रंगकर्मी विदुषी ऋता गांगुली जी (महान गायिका बेग़म अख़्तर की ख़ास शागिर्द) और विशिष्ट अतिथि थे मराठी और हिंदी के जानेमाने रंगकर्मी और सिने अभिनेता डॉ. मोहन अगाशे। इन दोनों विभूतियों को प्रत्यक्ष सुनना बेहद मूल्यवान अनुभव था।
उद्घाटन समारोह के बाद भारंगम-2020 की पहली नाट्य प्रस्तुति 'कुसूर' मंचित हुई, जो डेनमार्क की फ़िल्म 'Den Skyldige' पर आधारित थी। इसके हिन्दी पाठ की लेखिका और सह-निर्देशक थीं सन्ध्या गोखले। पुणे के नाट्य-समूह अन्नान निर्मिती की इस प्रस्तुति में मुख्य अभिनेता और निर्देशक के दोहरे दायित्व निभाए थिएटर, फ़िल्मों और टेलीविज़न की दिग्गज हस्ती अमोल पालेकर ने। अमोल जी अभी हाल में 75 वर्ष के हुए हैं और ख़ूब चुस्त और सक्रिय हैं।
नाटक एक रहस्य कथा के रूप में आगे बढ़ता है, पर रहस्योद्घाटनों की श्रंखला बाह्य जगत ही नहीं, बल्कि पात्रों और उनके माध्यम से दर्शकों को भी अपने भीतर के बीहड़ यथार्थ के अंधेरों से भी निर्ममतापूर्वक रूबरू कराती है, जो अन्ततः सभी को विरेचन (catharsis) से गुज़ारती है।
नाट्य प्रस्तुति के बाद मुझे अमोल पालेकर जी के संक्षिप्त सान्निध्य का सुअवसर भी मिला, जिसमें मैंने उन्हें याद दिलाया कि 1993-94 में आकाशवाणी महानिदेशालय में निर्मित कैशोर्य जीवन पर हिन्दी रेडियो नाट्य धारावाहिक 'दहलीज़' में एक उपन्यासकार के रूप में प्रस्तुत किए गए सूत्रधार का चरित्र उन्होंने निभाया था (और क्या ख़ूब निभाया था)। इस धारावाहिक का लेखन प्रख्यात रंगकर्मी और नाटककार सुश्री त्रिपुरारी शर्मा ने किया था और इसकी आरम्भिक 26 कड़ियों की प्रस्तुति मैंने और सह-प्रस्तोता मुकेश सक्सेना ने की थी। मैं आकाशवाणी, जबलपुर से और मुकेश आकाशवाणी, ग्वालियर से इस निर्मिति हेतु लगभग छह महीने के प्रवास पर दिल्ली आ कर रहे थे।
बहरहाल, 'दहलीज़' कथा.फिर कभी और आगे बढ़ेगी। आज के लिये महत्वपूर्ण बात यह कि अमोल जी को भी रेडियो नाटक की दुनिया में अपनी वह भागीदारी याद आई (उनकी रिकॉर्डिंग मुम्बई में की जाती थी और आकाशवाणी, मुम्बई के सौजन्य से हमें हर सप्ताह दिल्ली में प्राप्त होती थी)। फलत: उनके साथ एक छायाचित्र का सौभाग्य मुझे मिला।
चलते-चलते यह उल्लेख भी समीचीन होगा कि 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', 'चितचोर' से ले कर अनेक बेहद प्रिय और आत्मीय फ़िल्मों में सहज-सरल से ख़ासे जटिल तक चरित्रों को साकार करने वाले अमोल पालेकर जी हमारे विश्वविद्यालय के दिनों से हमारे बहुत मनचाहे कलाकार रहे हैं। मेरे विद्यालय काल से अब तक के घनिष्ठतम मित्रों में एक सुदीप भट्टाचार्य के रूपरंग में अमोल जी से ख़ासा सादृश्य है, जिस पर सुदीप के परिजन और हम मित्र मोहित रहते हैं। एक और दिलचस्प तथ्य यह भी कि भीमसेन निर्देशित महान प्रेमकथात्मक फ़िल्म 'घरौंदा' (अमोल पालेकर, ज़रीना वहाब और डॉ. श्रीराम लागू की अविस्मरणीय भूमिकाओं के साथ) में अमोल जी के चरित्र का नाम सुदीप ही है।
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