आज नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती है.
देश के सर्वाधिक तेजस्वी, साहसी और दृढ़ संकल्प के धनी स्वाधीनता सेनानियों में एक नेताजी के व्यक्तित्व के अनेक आयाम, कतिपय असहमतियों के बावजूद, आज भी हम सब को प्रेरणा देते हैं और सदैव देते रहेंगे.
जब मैं आकाशवाणी के जबलपुर केंद्र में पदस्थ था, तो संभवतः 1992 या 1993 में सुभाष जयंती पर 'जयहिंद सुभाष' शीर्षक से एक वृत्त रूपक का निर्माण मैंने किया था, जिसका प्रसारण मध्य प्रदेश स्थित सभी आकाशवाणी केन्द्रों से एक साथ किया गया था. कई लोग नहीं जानते कि कांग्रेस के जिस त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष बाबू अध्यक्ष चुने गए थे और फिर महात्मा गाँधी की खिन्नता के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था, वह त्रिपुरी जबलपुर के निकट ही स्थित है. जबलपुर के केन्द्रीय कारागार में नेताजी ने अपने कारावास का कुछ काल बिताया था और हमें बताया गया था कि वह पत्थर की बेंच वहां तब भी थी, जिस पर नेताजी शयन करते थे. जबलपुर नगर में एक कमानिया गेट नामक विशाल द्वार है और संभवतः उसका निर्माण भी नेताजी और कांग्रेस के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के स्वागत और अभिनन्दन हेतु हुआ था.
बाद में 1999 से 2002 तक मैं अंबिकापुर में पदस्थ था और वहां इप्टा, अंबिकापुर के हम लोग सुभाष जयंती पर हर वर्ष एक भव्य आयोजन करते थे, जिसका मुख्य आकर्षण बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता और प्रदर्शनी होती हैं. यह क्रम अब भी जारी है.
सुभाष बाबू का अनूठा वर्णन महान बांग्ला कथाकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने भी किया है, जिसका उल्लेख शरतचन्द्र की विष्णु प्रभाकर रचित कालजयी जीवनी 'आवारा मसीहा' में पढ़ कर मैं रोमांचित हुआ था.
और नेताजी की चर्चा के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज के उनके अनन्य और अभिन्न साथियों मेजर-जनरल शाहनवाज़ ख़ान, कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों और कैप्टेन डॉ. लक्ष्मी सहगल का ज़िक्र भी अनिवार्य है. इस विखंडनकारी दौर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भी समग्र विरासत का स्मरण और सम्मान ज़रूरी हैं.
देश के सर्वाधिक तेजस्वी, साहसी और दृढ़ संकल्प के धनी स्वाधीनता सेनानियों में एक नेताजी के व्यक्तित्व के अनेक आयाम, कतिपय असहमतियों के बावजूद, आज भी हम सब को प्रेरणा देते हैं और सदैव देते रहेंगे.
जब मैं आकाशवाणी के जबलपुर केंद्र में पदस्थ था, तो संभवतः 1992 या 1993 में सुभाष जयंती पर 'जयहिंद सुभाष' शीर्षक से एक वृत्त रूपक का निर्माण मैंने किया था, जिसका प्रसारण मध्य प्रदेश स्थित सभी आकाशवाणी केन्द्रों से एक साथ किया गया था. कई लोग नहीं जानते कि कांग्रेस के जिस त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष बाबू अध्यक्ष चुने गए थे और फिर महात्मा गाँधी की खिन्नता के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था, वह त्रिपुरी जबलपुर के निकट ही स्थित है. जबलपुर के केन्द्रीय कारागार में नेताजी ने अपने कारावास का कुछ काल बिताया था और हमें बताया गया था कि वह पत्थर की बेंच वहां तब भी थी, जिस पर नेताजी शयन करते थे. जबलपुर नगर में एक कमानिया गेट नामक विशाल द्वार है और संभवतः उसका निर्माण भी नेताजी और कांग्रेस के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के स्वागत और अभिनन्दन हेतु हुआ था.
बाद में 1999 से 2002 तक मैं अंबिकापुर में पदस्थ था और वहां इप्टा, अंबिकापुर के हम लोग सुभाष जयंती पर हर वर्ष एक भव्य आयोजन करते थे, जिसका मुख्य आकर्षण बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता और प्रदर्शनी होती हैं. यह क्रम अब भी जारी है.
सुभाष बाबू का अनूठा वर्णन महान बांग्ला कथाकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने भी किया है, जिसका उल्लेख शरतचन्द्र की विष्णु प्रभाकर रचित कालजयी जीवनी 'आवारा मसीहा' में पढ़ कर मैं रोमांचित हुआ था.
और नेताजी की चर्चा के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज के उनके अनन्य और अभिन्न साथियों मेजर-जनरल शाहनवाज़ ख़ान, कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों और कैप्टेन डॉ. लक्ष्मी सहगल का ज़िक्र भी अनिवार्य है. इस विखंडनकारी दौर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भी समग्र विरासत का स्मरण और सम्मान ज़रूरी हैं.
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