Monday, November 23, 2009

ज्ञानरंजन का ऋण.

हर बार सोचता हूँ कि अब अंतराल इतना नहीं आने दूँगा और उसके बाद हर बार अंतराल कुछ और बढ़ जाता है। ये तो एक शरीफ़ ब्लॉगर के लक्षण नहीं हैं। यदि कोई भला व्यक्ति कभी इसमें कुछ रूचि ले ले, तो निश्चय ही वह कुछ ही दिनों में मुझे पूरे अधिकार और औचित्य के साथ कोसता हुआ तोबा कर लेगा। सो इस बार की शुरुआत सीधे-सीधे क्षमायाचना के साथ ही करनी होगी।

नए घर में आया, तो नयी झंझटें भी साथ आईं। उनमें से एक थी ढंग के इन्टरनेट connection का तुरंत उपलब्ध न हो पाना। इससे स्वाभाविक ही विलम्ब होने लगा। फिर विलम्ब ही और अधिक विलम्ब का कारण बनता गया। जैसे कुछ करने की आदत होती है, मेरे जैसे काहिल व्यक्ति के लिए उससे ज़्यादा कुछ न करने की आदत होती है। सो हुई। पर सिलसिला फिर चलाने का विचार भी कभी छूटा नहीं, सो वह भी अब हो रहा है।

कल २१ नवम्बर को ज्ञानरंजन जी का जन्मदिन था। बहुत दिनों से उनसे बातचीत नहीं हुई थी। जन्मदिन की बधाई देने के लिए फ़ोन किया। 'पहल' पत्रिका के रूप में तो फ़िलहाल अभी रुकी हुई है। उसका इन्टरनेट संस्करण आरम्भ होगा, इसकी संभावना कहीं सुनी-पढ़ी थी। इस बारे में पूछने पर ज्ञान जी ने कहा कि अभी इसमें कई कठिनाइयां महसूस हो रही हैं और बहुत निकट भविष्य में शायद यह न हो पाए। उन्हें इस ब्लॉग के बारे में बताया और उन्होंने कहा कि इसे वे देखेंगे।

फ़ोन-वार्ता के समाप्त हो जाने के बाद काफ़ी देर तक ज्ञान जी मेरे साथ और आस-पास मौजूद रहे। असंख्य स्मृतियाँ कौंधने लगीं। हिन्दी के अप्रतिम कथाकार और 'पहल' के यशस्वी सम्पादक के रूप में तो ज्ञानरंजन को लाखों लोग जानते और मानते हैं, मैं स्वयं को उन बहुत से लोगों में निस्संकोच गिन सकता हूँ, जिन्हें ज्ञान जी का व्यक्तिगत साथ और स्नेह मिला। काशीनाथ सिंह ने अपने विराट संस्मरण संसार में इस पर भी लिखा है कि कैसे जबलपुर में ज्ञान जी के साथ युवाओं का एक बड़ा दल पूरी श्रद्धा और दोस्ती के साथ एकजुट हुआ करता था। मुझे भी उस पहचान को जीने का अवसर मिला और जिन लोगों के सबसे गहरे और दूरगामी प्रभाव मेरे जीवन पर पड़े, उनमें ज्ञान जी सबसे अग्रणी और महत्वपूर्ण लोगों में हैं।

इस बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है, कई रंगों और आयामों में। जिन दिनों मध्य प्रदेश में प्रगतिशील लेखक संघ की ऊर्जा, उमंग और प्रतिध्वनियाँ अपने चरम पर थीं, कई मित्र और साथी अक्सर यह कहते थे कि इस दौर के बारे में लिख लिया जाना चाहिए ताकि सनद रहे। नहीं कह सकता कि उस अपेक्षा पर खरा उतर पाऊंगा या नहीं, पर जैसी भी बन पाये, कुछ-कुछ कोशिश ज़रूर करूंगा। यह मेरे ख़ुद के लिए भी ज़रूरी है।

उम्मीद पे दुनिया कायम है.

1 comment:

  1. हमें इन्तज़ार रहेगा आपके संस्मरणों का, लेकिन इस विलम्बित लय में न लिखें...

    ReplyDelete