कल 11 अक्टूबर को सारा मीडिया तथाकथित 'सदी के महानायक' श्रीमान अमिताभ बच्चन के जन्मदिन पर न्योछावर हुआ जा रहा था। हमारे समय के विचलन और स्खलन का संभवतः यह भी एक संकेत था कि इस पूरी हायतोबा में कहीं इस तथ्य का उल्लेख तक देखने को नहीं मिला कि यह लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन था, जो निश्चय ही भारत के लिये श्रीमान 'बेचन या बेचो कुमार' से कहीं ज्यादा बड़ा व्यक्तित्व है। और अमिताभ पर चर्चा में ज़ी बिज़नेस चैनेल पर एक सूची उनकी फ़्लॉप यानी असफल फ़िल्मों की गिनाई गई, जिसमें पहला नाम अमिताभ की पहली फ़िल्म 'सात हिन्दुस्तानी' का बताया गया। मतलब यह कि ख्वाज़ा अहमद अब्बास की जिस मार्मिक फ़िल्म से अमिताभ का चित्रपट सफ़र शुरू हुआ, उसका दर्ज़ा अब सिर्फ़ उनकी एक कमा न पाने वाली फ़िल्म का है। हम लोग प्रगतिशील विचारधारा में विश्वास रखते हैं और भविष्य को, नूतन को आशा और अनुराग से देखते हैं या देखना चाहते हैं। पर इस मूल्य या मूल्यांकन पद्धति से तो स्तब्ध ही हुआ जा सकता है। खैर, चलो, अमिताभ 70 के हुए पर अभी काफ़ी दिन काफ़ी कुछ बिकवाते चलेंगे और फिर उनके सुपुत्र और पुत्रवधू तो 'बेचन' परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे ही। बहरहाल, 'सात हिन्दुस्तानी', 'आनंद', 'अभिमान', 'आलाप' और उन जैसी कुछ और गिनीचुनी फिल्मों के कलाकार अमिताभ को जन्मदिन की बधाई कि उन्होंने सार्थक और बेहतर सिनेमा में बड़े योगदान की उम्मीदें तो जगाई ही थीं, पूरी नहीं हुईं तो कोई बात नहीं। और कौन जाने, भविष्य में क्या हो।
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