आगत का स्वागत, व्यतीत को विदा, इच्छाओं-स्वप्नों की फिर नयी कथा.
नववर्ष-२०१२ हेतु हार्दिक शुभकामनायें.
जो ऊपर लिखा है, उसे मैंने आज दिन में यानी १ जनवरी, २०१२ के दिन में मित्रों को एस.एम.एस. शुभकामनायें भेजने के लिए सोचा था और कुछ को भेजा भी पर मेहरबानी मोबाइल प्रणाली की आंतरिक समस्याओं या विधान की कि एक भी गया नहीं. खीझ और उम्मीद के बीच कुछ और जुड़ा और अब तक इतना हुआ है: -
आगत का स्वागत, व्यतीत को विदा, इच्छाओं-स्वप्नों की फिर नयी कथा.
हंसमुख अंधियारों से दोस्ती खिली;
दुनिया अपनी धुन की राह पर चली.
फूलों की पहचान खो रही मगर
नदी तीर हवा लगे अब भी भली.
अभी अंत नहीं, अभी और है व्यथा.
बाकी और कुछ हो न हो, यह जान कर काफ़ी चकित, कुछ पुलकित और कुछ आशंकित भी हूँ कि छंद में कुछ लिख डालने की स्थिति पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है. चिंता यों है कि तुकबंदी से दूर रहने का इतने वर्षों का प्रयास, क्या हो जाएगा वृथा.
विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास है 'खिलेगा तो देखेंगे'. आमीन.
नववर्ष-२०१२ हेतु हार्दिक शुभकामनायें.
जो ऊपर लिखा है, उसे मैंने आज दिन में यानी १ जनवरी, २०१२ के दिन में मित्रों को एस.एम.एस. शुभकामनायें भेजने के लिए सोचा था और कुछ को भेजा भी पर मेहरबानी मोबाइल प्रणाली की आंतरिक समस्याओं या विधान की कि एक भी गया नहीं. खीझ और उम्मीद के बीच कुछ और जुड़ा और अब तक इतना हुआ है: -
आगत का स्वागत, व्यतीत को विदा, इच्छाओं-स्वप्नों की फिर नयी कथा.
हंसमुख अंधियारों से दोस्ती खिली;
दुनिया अपनी धुन की राह पर चली.
फूलों की पहचान खो रही मगर
नदी तीर हवा लगे अब भी भली.
अभी अंत नहीं, अभी और है व्यथा.
बाकी और कुछ हो न हो, यह जान कर काफ़ी चकित, कुछ पुलकित और कुछ आशंकित भी हूँ कि छंद में कुछ लिख डालने की स्थिति पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है. चिंता यों है कि तुकबंदी से दूर रहने का इतने वर्षों का प्रयास, क्या हो जाएगा वृथा.
विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास है 'खिलेगा तो देखेंगे'. आमीन.
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