अपनी एक छोटी सी कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ -
वह कहीं से
एक टुकड़ा रोशनी का
ढूंढ लाया
और उसको आंज कर
आँखें उठाईं
सात पर्दे
बात ही की बात में
ग़ायब हुए सब
धूप की
फुलवारियों की
बात फिर सोची गई है.
वह कहीं से
एक टुकड़ा रोशनी का
ढूंढ लाया
और उसको आंज कर
आँखें उठाईं
सात पर्दे
बात ही की बात में
ग़ायब हुए सब
धूप की
फुलवारियों की
बात फिर सोची गई है.
बहुत सुन्दर.
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